साधनाप्रणाली
विचार करने पर स्थिति स्पष्ट है - यदि समाजसेवियों की संख्या के अनुरूप साधन दिखाई नहीं देते तो साधना के लिए घर से निकलने वालों की संख्या के अनुरूप आत्मोकर्ष के धनी कहाँ ? इसका सीधा तात्पर्य यह है कि प्रणाली की समग्रता का मर्म नहीं समझा गया। उसे यथारीति अपनाया नहीं गया। किसी भी साधनाप्रणाली में प्रवेश हेतु अनिवार्य योग्यता है, नैतिकता। पतंजलि हों चाहे गोरखनाथ या फिर कृष्ण, बुद्ध, लाओत्से, ताओ कोई भी क्यों न हों, इस अनिवार्य योग्यताओं के बिना अपनी साधनापद्धति में प्रवेश नहीं देते।
The situation is clear on considering - if the means are not visible according to the number of social workers, then where are the rich of self-realization according to the number of people who leave the house for spiritual practice? This simply means that the essence of the totality of the system is not understood. It was not adopted as is. Ethics is an essential qualification for entry into any spiritual practice. Patanjali, whether Gorakhnath or Krishna, Buddha, Lao Tzu, Tao, does not enter his spiritual practice without these essential qualifications.
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ज्ञान की निधि वेद वेद ज्ञान की अमूल्य निधि एवं धरोहर है। इनमें आंलकारिक प्रसंग से जटिल विषय को सरल करके समझाया गया है। देश का एवं मानवजाति का दुर्भाग्य है कि महाभारत के पश्चात वेदों के पठन-पाठन की परम्परा छूट गई तथा चारित्रिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गई जो हमारे पतन का तथा वैदिक सभ्यता के उपहास का कारण बनी। इन कुरीतियों को...