मृत्यु जीवन की संगी-साथी
यदि जीवन है, तो उसके साथ मृत्यु अविभाज्य रूप से जुडी हुई है। इसे यों भी कह सकते हैं कि जीवन अपने भीतर मृत्यु को समाहित किए हुए है, छिपाए हुए है। समय आने पर जीवन समाप्त हो जाता है और मृत्यु प्रकट हो जाती है। इस तरह जीवन के साथ-साथ हर पल मृत्यु चलती है। यदि व्यक्ति जीवन को समझने का प्रयास करता है, मृत्यु को अनदेखा कर देता है, मृत्यु को पहचानने की कोशिश नहीं करता, तो वह जीवन के सही स्वरूप को नहीं समझ पाएगा; क्योंकि मृत्यु जीवन के विपरीत नहीं है, मृत्यु जीवन की संगी-साथी है। ये दो नहीं हैं, बल्कि एक ही घटना के दो छोर हैं। जीवन इसका प्रारंभ है और मृत्यु उसकी समाप्ति है।
If there is life, then death is inseparably connected with it. It can also be said that life contains death within itself, is hidden. When the time comes, life ends and death appears. In this way death goes along with life every moment. If one tries to understand life, ignores death, does not try to recognize death, then he will not understand the true nature of life; Because death is not the opposite of life, death is the companion of life. These are not two, but two ends of the same event. Life is its beginning and death is its end.
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