ईश्वरीय चेतना
जो अवर्णनीय है, अलौकिक है, अद्वितीय है, अनुपम है। यह परम आनंद हमारी आत्मा से ही प्रस्फुटित होता है; क्योंकि हम स्वयं भी सत्-चित्-आनंदस्वरूप परमात्मा से बने हैं। हम स्वयं भी उन्हीं परमात्मा के अंश हैं, जो आनंदस्वरूप हैं। यह हमारी अपनी ही चेतना है, जो ईश्वरीय चेतना से जुड़कर स्वयं भी सत्-चित्-आनंदस्वरूप, परमात्मास्वरूप हो जाती है। अब प्रश्न यह उठता है कि ध्यान की शुरुआत कहाँ से कैसे करें ? इसकी शुरुआत हम निस्संदेह एकाग्रता से कर सकते हैं।
That which is indescribable, supernatural, unique, incomparable. This supreme bliss emanates from our soul itself; Because we ourselves are also created from the Supreme Soul as Sat-Chit-Anand. We ourselves are also a part of the same God, who is the embodiment of bliss. This is our own consciousness, which by connecting with the Divine consciousness itself also becomes Sat-Chit-Anand Swaroop, Paramatma Swaroop. Now the question arises that from where to start meditation? Of course, we can start with concentration.
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ज्ञान की निधि वेद वेद ज्ञान की अमूल्य निधि एवं धरोहर है। इनमें आंलकारिक प्रसंग से जटिल विषय को सरल करके समझाया गया है। देश का एवं मानवजाति का दुर्भाग्य है कि महाभारत के पश्चात वेदों के पठन-पाठन की परम्परा छूट गई तथा चारित्रिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गई जो हमारे पतन का तथा वैदिक सभ्यता के उपहास का कारण बनी। इन कुरीतियों को...