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दिव्य दृष्टि 
आगे अर्जुन कहता है कि हे कृष्ण ! अपने भूतों की उत्पत्ति और विलय के बारे में जो बातें बतायी हैं और जो आपने अपनी विभूतियों और शक्तियों का वर्णन किया है, उन सबको मैंने बड़े ही ध्यान से सुना हैं। मुझे पूरा विश्वास हो है कि आप अपने बारे में जैसा कहते हों, ठीक वैसे ही हो, किन्तु अब मैं आपके उस ऐश्वर्ययुक्त रूप को प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ। गजब का निर्भीक एवं जिज्ञासु रहा होगा। भगवान ने भी अर्जुन से यह नहीं कहा कि के तुझे मेरी बातों, मेरी विभूतियों, मेरे ऐश्वर्य पर भरोसा नहीं है और क्या तू मेरी परीक्षा लेना चाहता है ? तू चाहता है कि जैसा कह रहे हो, वैसा प्रत्यक्ष में बताओ भी। भगवान बिना कुछ कहे तुरंत ही अपना विराट रूप दिखाने को तत्पर हो गये। भगवान ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि दे दी, ताकि वह उनके स्वरूप को देख सके। इन चर्म-चक्षुओं से भगवान के दर्शन नहीं किये जा सकते, क्योंकि भगवान अगोचर है, इन्द्रियों की वहां तक पहुँच नहीं है। उनके दर्शन के लिए दिव्य दृष्टि चाहिये होती है, जो केवल भगवान की कृपा से ही प्राप्त हो सकेगी। वह हमें आपको भी प्राप्त हो सकती है। 

Next Arjun says that O Krishna! I have listened very carefully to the things you have told about the origin and merger of your ghosts and what you have described about your vibhutis and powers. I have full faith that you are exactly as you say about yourself, but now I want to see that glorious form of yours directly. Must have been amazingly fearless and inquisitive. Even God did not say to Arjuna that you do not trust my words, my personalities, my wealth and do you want to test me? You want that as you are saying, tell the same in reality. God immediately got ready to show his great form without saying anything. The Lord gave Arjuna divine sight, so that he could see His form. God cannot be seen with these skin-eyes, because God is invisible, the senses do not reach there. To see him, divine vision is required, which can be achieved only by the grace of God. You can get that from us too.

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  • ज्ञान की निधि वेद

    ज्ञान की निधि वेद वेद ज्ञान की अमूल्य निधि एवं धरोहर है। इनमें आंलकारिक प्रसंग से जटिल विषय को सरल करके समझाया गया है। देश का एवं मानवजाति का दुर्भाग्य है कि महाभारत के पश्‍चात वेदों के पठन-पाठन की परम्परा छूट गई तथा चारित्रिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गई जो हमारे पतन का तथा वैदिक सभ्यता के उपहास का कारण बनी। इन कुरीतियों को...

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