नियत दिशा
विचारणा और क्रिया के तारतम्य को समझा जा सके, तो कृतसंकल्प होने के साथ ही विचारतंत्र को अस्त-व्यस्तता से छुड़ाकर किसी भी दिशा में चिंतनतंत्र में भटकने से रोककर नियत दिशा में नियोजित करना होता है। यदि दोनों के बीच खिंच-तान रही, तो प्रगति का कदम आगे न बढ़ सकेगा। शरीर को इच्छित कार्यों के लिए अभ्यस्त करना होता है। अनजानी दिशा में पैर रुककर बढ़ते हैं। भटकाव का संदेह रहने पर पैर कभी आगे बढ़ते है; कभी पीछे हटते हैं। सुनिश्चित यात्रा उन्हीं की होती है; जिन्होंने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आवश्यक जानकारी जुटा ली है तथा सम्यक सामग्री एकत्रित कर ली है।
If the synergy of thought and action can be understood, then along with being determined, the thought system has to be freed from the hustle and bustle in any direction by stopping it from wandering in the thinking system and planning it in a fixed direction. If there is tension between the two, then the step of progress will not be able to move forward. The body has to be accustomed to the desired functions. Feet move in an unknown direction. Sometimes the legs move forward when there is a suspicion of deviation; Sometimes back. The sure journey belongs to them; Those who have gathered the necessary information and collected the right material to reach the goal.
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ज्ञान की निधि वेद वेद ज्ञान की अमूल्य निधि एवं धरोहर है। इनमें आंलकारिक प्रसंग से जटिल विषय को सरल करके समझाया गया है। देश का एवं मानवजाति का दुर्भाग्य है कि महाभारत के पश्चात वेदों के पठन-पाठन की परम्परा छूट गई तथा चारित्रिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गई जो हमारे पतन का तथा वैदिक सभ्यता के उपहास का कारण बनी। इन कुरीतियों को...