योग का अर्थ
योग का सामान्य अर्थ जोड़ना है। विज्ञान हर वस्तुतत्व के विखंडन (एनलाईसिस) द्वारा उसका ज्ञान प्राप्त करता है लेकिन धर्म और योग सिंथेसिस द्वारा जोड़ने से ज्ञान प्राप्त करता है। योग ज्ञान, तप, भक्ति का योग है। योगस्समाधिः से यही अर्थ ध्वनित होता है कि शरीर, मन, प्राण, बुद्धि पूर्वक चित्तवृत्तियों के निरोध पूर्वक आत्म साक्षात्कार करके परम सत्ता से जिस साधना से तादात्म्य किया जाए वह योग है। योग के मूल तत्व में कोई अंतर् नहीं है, अंतर है तो इतना ही कि अन्य वैदिक ग्रन्थों में योग सुनिश्चित साधनाओं के अनुक्रम में न आकर ज्ञान, तप, भक्ति के रूप में उपदिष्ट है।
पतंजलि इसे एक वैज्ञानिक प्रविधिरूप में जनसामान्य के लिए प्रतिपादित करते हैं परन्तु गीता इन्हीं तत्वों को जीवन कर्म में अनुस्यूत कर, अंगीभूत कर प्रस्तुत करती है। गीता में योग जीवन के हर कर्म में समाया है। जीवन में कर्म के बिना कोई रहन नहीं सकता, शरीर में निहित शक्ति ऊर्जा है जो सतत गतिमान है।
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ज्ञान की निधि वेद वेद ज्ञान की अमूल्य निधि एवं धरोहर है। इनमें आंलकारिक प्रसंग से जटिल विषय को सरल करके समझाया गया है। देश का एवं मानवजाति का दुर्भाग्य है कि महाभारत के पश्चात वेदों के पठन-पाठन की परम्परा छूट गई तथा चारित्रिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गई जो हमारे पतन का तथा वैदिक सभ्यता के उपहास का कारण बनी। इन कुरीतियों को...