दुनिया की प्रगति
देखते हैं कि दुनिया प्रगति कर रही है। धन बढ़ रहा है। विद्या और बुद्धि का चमत्कार चारों ओर बिखरा पड़ा है। विज्ञान ने देवलोक जैसी सुविधाएँ इस धरती पर प्रस्तुत कर दी हैं। मनोरंजन के माध्यम तेजी से बढ़ते चले जा रहे हैं। चिकित्सा ने मौत को चुनौती दी है और भी न जाने क्या-क्या बढ़ता चला जा रहा है। इस प्रगति के युग में न जाने कौन-सी विकृति मनुष्य के भीतर घुसती, बढ़ती चली जा रही है; जिससे वह सुना-खोखला, एकाकी-डरावना और खोया-लुटा-सा बन रहा है। न किसी के जीवन में आनंद, न उल्लास, न संतोष और न शांति।
Let's see the world is progressing. Money is increasing. The miracle of learning and wisdom is scattered all around. Science has presented facilities like Devlok on this earth. The medium of entertainment is growing rapidly. Medicine has challenged death and it is not knowing what is increasing. In this age of progress, do not know which distortion is entering the human being, is increasing; Due to which he is becoming heard-hollow, lonely-horror and lost-spoiled. Neither joy, nor gaiety, nor contentment nor peace in anyone's life.
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ज्ञान की निधि वेद वेद ज्ञान की अमूल्य निधि एवं धरोहर है। इनमें आंलकारिक प्रसंग से जटिल विषय को सरल करके समझाया गया है। देश का एवं मानवजाति का दुर्भाग्य है कि महाभारत के पश्चात वेदों के पठन-पाठन की परम्परा छूट गई तथा चारित्रिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गई जो हमारे पतन का तथा वैदिक सभ्यता के उपहास का कारण बनी। इन कुरीतियों को...