स्वाध्याय-सत्संग
मनुष्य अपने आत्मोद्धार के लिए, भगवत्प्राप्ति के लिए चिंतन-मनन कर सकता है, साधन, भजन, ध्यान कर सकता है, स्वाध्याय-सत्संग कर सकता है। अपने किए इन चीजों की, साधनों की व्यवस्था कर सकता है। जो कि अन्य योनियों में सोच पाना या कर पाना संभव नहीं था। विषय-भोगों को भोगते हुए ही जीवन खतम कर लेना, मनुष्य जीवन का लक्ष्य नहीं है और न ही यह मनुष्य जीवन की गौरव-गरिमा के अनुकूल ही है।
For self-improvement, one can meditate for the attainment of God, can do meditation, bhajan, meditation, self-study-satsang. For these things done by him, he can arrange the means. Which was not possible to think or do in other yonis. To end life only while enjoying the pleasures of objects is not the goal of human life, nor is it compatible with the pride and dignity of human life.
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ज्ञान की निधि वेद वेद ज्ञान की अमूल्य निधि एवं धरोहर है। इनमें आंलकारिक प्रसंग से जटिल विषय को सरल करके समझाया गया है। देश का एवं मानवजाति का दुर्भाग्य है कि महाभारत के पश्चात वेदों के पठन-पाठन की परम्परा छूट गई तथा चारित्रिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गई जो हमारे पतन का तथा वैदिक सभ्यता के उपहास का कारण बनी। इन कुरीतियों को...