जीवात्मा
संसार में तीन अनादि, अमर तथा नित्य सत्तायें हैं ईश्वर, जीव और प्रकृति। हम जीव हैं और हमारी ही तरह अनन्त जीवात्मायें इस ब्रह्माण्ड में हैं। हम जीवात्मा हैं और शरीर पंचभौतिक पदार्थों के संयोग से बना है। यह संयोग ईश्वर के बनाये नियमों व व्यवस्था के द्वारा होता है। जिसकी उत्पत्ति होती है उसका विनाश भी होता है और जैसी उत्पत्ति नहीं हुई उसका विनाश कभी नहीं होता। इसी कारण हमारा शरीर नाशवान अर्थात् मरणधर्मा है जबकि हमारी आत्मा आदि, नित्य, अविनाशी और अमर है। हमारे इस शरीर के जन्म से पूर्व भी आत्मा का अस्तित्व था। हमारे इस शरीर के मृत्यु को प्राप्त होने पर भी हमारी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है।
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ज्ञान की निधि वेद वेद ज्ञान की अमूल्य निधि एवं धरोहर है। इनमें आंलकारिक प्रसंग से जटिल विषय को सरल करके समझाया गया है। देश का एवं मानवजाति का दुर्भाग्य है कि महाभारत के पश्चात वेदों के पठन-पाठन की परम्परा छूट गई तथा चारित्रिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गई जो हमारे पतन का तथा वैदिक सभ्यता के उपहास का कारण बनी। इन कुरीतियों को...